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यह कानून उम्मीद की एक रोशनी की तरह साबित होगा- श्रद्धा रानी शर्मा

 
 
 
             मुंबई अभी हाल ही मै खबर मिली की यूपी राज्य विधि आयोग ने उत्तर प्रदेश सरकार को एक कानून बनाने के लिए प्रस्ताव रखा है. प्रस्ताव कम शब्दो मे कुछ इस प्रकार है,अगर बच्चे अपने माता-पिता की सेवा नही करते है,तो माता पिता की संपति पर उनका कोई अधिकार नही होगा। उसके बावजूद अगर वह उनकी संपति उनसे छीन कर, उनको बेघर कर देते है, तो माता-पिता उन पर कानूनी कारवाही करने का अधिकार रख सकेंगे।
           सरकार से पहले भारत के हर उस जिम्मेदार नागरिक को यह सोचने की आवश्यकता है, कि आख़िर भला इस कानून की आवश्कता हमे क्यो आ पड़ी? क्या हम अपने आदर्श, अपने संस्कार, अपनी परंपराएं सब भूल गए? क्या हम भूल गए कि हम उस भारत मे रहते है, जहां श्रवण कुमार जैसे पुत्रो ने जन्म लिया है, हम भूल गए हम अपनी संस्कृति के लिए पूरे विश्व मे जाने जाते है? हाँ मुझे अब लगता है कि वाकई हम भूल गए,और वर्तमान की हालत देख कर शर्म भी आती है, कि क्या वाकई हम श्रवण कुमार के भारत मे रहते है?उस श्रवण कुमार के जो अत्यंत श्रद्धापूर्वक अपने माता-पिता की सेवा के लिए जाने जाते थे। श्रवण कुमार ने अपने नेत्र हीन माता-पिता को कांवड़ मे बैठा कर तीर्थ यात्रा कराई थी, इस बात से कोई अनजान नही है।
         इस बात से परे मै जब सोचती हूँ तो सहम उठती हूँ कि आख़िर कोई कैसे अपने माता-पिता के साथ छल कर सकता है, मै समझती हूँ इस दुनिया मे अपने माता-पिता के साथ छल किया जाना अपने वजूद को खत्म किए जाने जैसा है।अपवाद को छोड़कर आज के आधुनिक होते भारत की विडंबना यही है, कि आज बच्चे अपने माता-पिता को एक बोझ की तरह देख रहे हैं. ऐसा बोझ जिसे वो ढोना नहीं चाहते. शायद इसी लिए श्रवण कुमार के इस भारत में मां-बाप की सेवा करने के लिए भी कानून बनाने की जरूरत पड़ी है. यू पी ही नही संपूर्ण भारत मे ऐसे कई माँ बाप है, जो उनकी ही संतानों के द्वारा बेघर कर दिए गए है, उनकी ही संपति उनसे छीन ली गयी है, कहा जाता है कि बच्चपन और बुढ़ापा दोनों जीवनकाल की दो ऐसी अवस्थाएं होती हैं जहां मनुष्य को प्यार और देखभाल की सबसे ज़्यादा जरूरत होती है। हमारे देश में तो बुजुर्गों को उस पेड़ की तरह माना जाता रहा है जो जब तक खड़ा है वो तब तक तपती धूप में छांव देता रहेगा। लेकिन अक्सर ऐसे मामले देखने में आते हैं जहां बच्चें अपने बुजुर्गों की अनदेखी करते हैं। मां-बाप को संपत्ति से बेदखल कर दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ दिया जाता है या फिर उन्हें वृद्धाश्रम की चार दिवारी में रहने को मजबूर कर दिया जाता है।
      अपना घर होते हुए भी वह वृद्धाश्रम, सड़को, रेलवे स्टेशन, झुग्गी -झोपड़ी जैसी जगहो पर अपना जीवन यापन करते है। मैं फिल्मी उद्योग की कलाकार श्रद्धा शर्मा इस कानून का पूर्ण रुप से समर्थन करती हूं कि सरकार को पहले करना चाहिए था यह कानून हमारे बुड्ढे मां बाप के लिए एक वरदान साबित होगा । यह कानून बुजुर्ग माता-पिता के लिए एक बहुत बड़ी उम्मीद जैसा है, यह कानून बुजर्ग माता पिता को सिर्फ संपति ही वापसी का भरोसा ही नही देगा ,बल्कि एक अच्छी परवरिश, एक अच्छा परिवार, बच्चो मे सेवा भाव के साथ-साथ संस्कार भी देगा ।