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' एक हसीना थी एक दीवाना था ' दर्शन करने लायक कुछ भी नहीं मात्र छायांकन के

 
 
         यक़ीन नही होता सुनील दर्शन अब ऐसी फिल्म बनाएंगे जिन्होंने जानवर , एक रिश्ता , अजय , लूटेरे और अंदाज़ जैसी फिल्में बनायी हो और अमिताभ बच्चन , सनी देओल और अक्षय कुमार सरीखे दिग्गज अभिनेताओं को डायरेक्ट कर चुके हो । हां उनकी कुछ फिल्में फ्लॉप जरूर हुई है मगर समधुर संगीत और भावनात्मक पक्ष दर्शकों के ज़ेहन में आज भी हैं । 
      एक हसीना थी एक दीवाना था फ़िल्म में सुनील दर्शन साहब क्या दर्शाना चाहते थे ये समझ से परे है । नहीं के बराबर कहानी , कमजोर स्क्रिप्ट , पुराने अंदाज़ के संगीत , घिसा पिटा संवाद ऊपर से शेरो शायरी , अजी जनाब अब वह ज़माना नहीं रहा ।
        कहानी सरल शब्दों में यह है कि सनी और नताशा बेस्ट फ्रेंड हैं और शादी करने हसीन वादियों में स्थित एक आलीशान मेंशन में आते हैं । वहाँ एक फार्म वर्कर देव नताशा का दीवाना हो जाता है ।
पूर्वजन्म में देव और नताशा की नानी आशा  एक दूसरे के दीवाने होते हैं । और अब धीरे धीरे देव की शेरो शायरी और प्यार भरी बातें सुनकर नताशा भी देव को चाहने लगती है । सनी को यह जानकर दुख पहुँचता है वह देव से भिड़ जाता है लेकिन नताशा की मोहब्बत पर अपने प्यार को कुर्बान कर देता है । एक सच्चाई सामने आती है कि देव कॉन्ट्रैक्ट किलर बनकर नताशा को प्रेमजाल में फांसकर उसकी हत्या कर देना चाहता है लेकिन नताशा के प्यार को देखकर सच बयान कर देता है । नताशा की मौत चाहने वाला राज़दार रहता है जब राज़ से पर्दा उठता है तब पता चलता है कि नताशा का पिता ही उसे मारकर सारी जायदाद अपने नाम करना चाहता है जो कि सौतेला पिता होता है और नताशा तो क्या दर्शक भी अनजान और हैरान होते हैं ।
         एक हैरानी वाली बात यह कि देव एक आत्मा होता है जो सबको दिखाई देता है और कैमरे में उसका फ़ोटो भी आता है तथा अंत में मरते समय सनी अपनी अंतिम इच्छा मांगते हुए ईश्वर से कहता है कि देव को जीता जागता इंसान बना दे ।
          ख़ैर फ़िल्म कल्पना का संसार होता है और कुछ भी हो सकता है ।
         सनी के पात्र में उपेन पटेल फिट रहे , वह आकर्षक लगे और ठीक ठाक अभिनय करते नज़र आये । दर्शकों के सहानुभूति के पात्र उपेन ही हैं । शिव दर्शन का बॉडी बढ़िया है मगर सपाट भाव से शेरो शायरी करते हुए डायलॉग बोलने में दम नहीं दिखा पाए , एक्टर बनने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी और पिता - पुत्र दोनों को एक दूसरे की भावनाओं को समझना होगा ।
        नताशा बेबी डॉल की तरह लगी आगे उन्हें डायलॉग डिलीवरी पर फोकस करना होगा नहीं तो बोल्ड रोल में ही सिमट जाएगी । फ़िल्म के लोकेशन ही आंखों को सुकून देते हैं ।
         एक हसीना थी एक दीवाना था फ़िल्म देखने के बाद शायद ही कोई दर्शक बोले कि ऐसी भी कोई फिल्म थी ।
 
संतोष साहू