फिल्मों में सच्चाई आजकल नजर ही नही आ रही है| कहते है कि फिल्में समाज का एक आयना है| पर फिल्में सच से कोषों दूर् ही नजर आती है| पर नही राजा कृष्ण मेनन की फ़िल्म एयरलिफ्ट देख् आप यह कहाँ सकते हो की कोई है जो सचाई दिखाने का साहस भी करता है वह भी वस्तिक्ता के साथ|
यह फ़िल्म 1990 में इराक कुवैत युद्ध में फँसे 1, 70,000 भारतीयों को असुरक्षा और निकासी की कहानी है| सदाम हुसैन चाहते थे की कुवैत तेल का उत्पादन कम करे| इससे तेल की कीमत बढ़ेगी और इराक ज़ैदा लाभ कमा सके | पर ऐसा हुआ नही और इराक ने कुवैत पर हमला किया और लूटपाट के साथ कुवती को देख् कर जान माल लूट लेते थे| ऎसे में यहा काम कर रहे भारतीयों के लाले पड़ गए, बेघर के साथ पाई पाई मोहताज हो गए|
एक शातिर बिज़िनेस में रंजीत कतियाल उनकी अमृता और बच्ची के साथ उन सभी भारतीयों की है जो कुवैत में फँसे थे| रंजीत अपनी पत्नी बच्ची के साथ निकाल सटा था, पर एकाएक वह मसीहा बन जाता है और वह सभी को साथ इंडिया लाने की कोशिश में लगा रहा उसकी यह कोशिश से पत्नी हैरान भी हुई, पर आखिर उसने भी साथ दिया| क्यूँकि रंजीत का स्वभाव जैसा था उसके विपरीत यह काम था| पर उसने हिम्मत नही हारी|
निर्देशक ने अपनी सारी बात बेहद सरल तरीके से कही यहा तक राजनैतिक सम्बन्ध और राजनीति आलस को भी बखूबी पिरोया है| अक्षय कुमार ने ने दिखा दिया की वह इस तरह के किरदार को भी अपने अदंर आसानी से पिरो सकते है| निर्मित ने अपने अभिनय से फिर एक बार बता दिया की वह किरदार को अपने आगोश में सिमिट लेती है| आंय सभी किरदार ने अपने अपने तौर पर सटीक काम किया है| निर्देशक ने सभी से फिर किसी का एक छोटा द्रुश्य हो या बड़ा अपने किरदार को पर्दे पर जीवित किया है|
फ़िल्म के एक सीन में जब भारतीय ध्वज को देख रोगते खड़े हो जाते है| आपको बता दे की उस समय कुवैत में फँसे भारतीयों की मद्दत तत्कालीन मंत्री इन्द्र कुमार गुजराल की पहल पर एयर इंडिया ने 59 दिनों में 488 उड़ानों के जरिए सभी भारतीयों की निकासी की| यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है|
पुष्कर ओझा