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समीक्षा : ब्रदर्स ( स्टार 2)

                 ब्रदर्स हॉलीवुड फ़िल्म वोर्रियर  जो 2011 में रिलीज  हुई उसका रिमिक है  | निर्देशक  करण  मल्होत्रा ने ईस फिल्म के पहले 2012 में फ़िल्म अग्निपथ की रिमीक बनाई थी, जिसमे रितिक रोश नजर आए थे| ब्रदर्स नाम से ही समजा जा सकता है की यह दो भाइयों यानि मोंटी और डेविड की कहानी है दोनों सौतेले भाई है, उनके पिता गैरी की एक और शादीी उनके परिवार  में खलल पैदा करती है| गैरी एक बार  शराब के नशे में पहली बिबी मारिया पर हाथ उठता है , और मारिया की मौत हो जाती है, गैरी जेल जाता है, और दोनों भाई अलग हो जाते है| 
            फिल्म इंटरवल तक काफी  धीमी गति से चलती है. हा इंटरवल के बाद लगा की प्रभाव डालने में सक्षम होंगी पर दोनों भाइयों के रिंग के द्रश्य रोचक लगते है, उतने प्रभाव पूर्ण नही, फ़िल्म में मार्शल आर्ट  का इस्तेमाल किया गया है, फाईट फिल्मों के शौकीन दर्शकों के लिए फ़िल्म बेहतरीन हो सकती है, पर न मोंटी ( सिध्दार्थ मल्होत्राा) और न डेविड ( अक्षय कुमार) बॉक्सर नजर आयें अपनी भूमिका के लिए जरूर मेहनत की है, रिंग में बॉक्सर के रुप में खरे नही उतर सके, क्योकि जीत हार पहले से ही  समज में आ जाती है.| अब हिन्दी फिल्मों की रीति ही यही है, बड़ा भाई और सिनियर एक्टर ही जितेंगा, इसलिये उत्साह  भी दबा  दबा ही रह जाता है|
   पिता के रुप में गैरी ( जैकी शराफ)ओवर एक्टिंग करते नजर आए| सेफाली शाह, किरण कुमार और आशुतोष राणा छोटी और सहयोगी भूमिकाओं में आयें और मुखय कलाकारों को निखारने में मददगार रहे, जैकलिन  के बदले कोई और अभिनेत्री रहती तो भी चलता,अब उनकी क्षमता को देखकर यही  कहाँ सकते है|
फ़िल्म का  स्क्रीनप्लेय और अच्छा हो सकता था, पर निर्देशक करण मल्होत्रा किरदार को ठीक तरह से पेश करने में सक्षम न हो पाए, वहीं सिध्दार्थ मल्होत्रा हर बार एक ही एक्सरप्रेशन में नजर आयें दृश्यों में अन्य भावों की भी संभावना थी,अक्षय ऐक्शन दृश्यों क खूब समजते है, आखिर खिलाड़ी कुमार का टैग जो है अक्षय  किरदार की पीड़ा को समज कर अपने अभिनय में खरा उतरने की भरपूर कोशिश की फिर परिवार के प्रति हो या रिंग में|
     करण मल्होत्रा  की ब्रदर्स पिछली फिल्म  अग्निपथ के  आस् पास ही लगती है|


पुष्कर ओझा