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'एंग्री इंडियन गोडेसेस' महिलाओं की इच्छाओं और उनके मन को समज पाने में सक्षम (स्टार 3)

                  बॉलीवुड सदियों से पुरुष प्रधान फिल्में बनाता आया है, जी हा महिला प्रधान फिल्में भी बनी है पर उँगली पर गिन सकते है उतनी ही|  और महिला दोस्ती की कहनिया तो शायद ही बनी है| पेन नलिन ने यह कोशिश की है फिल्म एंग्री इंडियन गोडेसेस | इस फिल्म में सात महिलाओ की दोस्ती दिखाई गई है| कॉलेज में साथ में पढ़ी और उनकी दोस्ती आज भी बरकरार है, इनमें एक की शादी होकर एक बच्चे की माँ बन चुकी है, एक की शादी के पाँच साल बीत चुके है पर संतान नही हो पा रही है| एक सिंगर बनने की भरपूर कोशिश कर रही है| और कुछ अपनी जिंदगी और कैरियर के भँवर में जूझ रही है| 
           इन सब को लगता है की पुरुष प्रधान समाज उनकी इच्छाओं को कुचल रहा है| वह आज भी महिलाओं की इच्छाओं और उनके मन को समज पाने में सक्षम नही है| यह सभी अपनी दोस्त फ्रीडा की शादी के लिए गोवा आते है| सुरंजना,जोअना, नरगिस, मधुरिता और पैम पहुँच जाते है जिनकी देखभाल के लिए मेड लक्स्मी को रखा ही गया है| लक्स्मी की जिदंगी में भी काफी संघर्ष है|  हिन्दी फिल्मों में शायद ही महिलाओं की इन दुखती नस को  दिखाने की किसी ने हिम्मत की हो| यहा तक समलैंगिगता को भी दृश्य गया है| फिल्म के सवांद को सुन हँसी आती है| कटाक्ष करने में पेन नलिन ने एक भी मौका नही छोड़ा है|फिल्म के हर द्रिश्य को बड़ी ही बारीकी से दर्शाया गया है|फिल्म में नायक नही है पर एक सीन में जब एक नायक को दिखाया गया और सभी उसे देख् अहेन भर्ती है और जो सवांद दिए है| वह देखने लायक है |
          ऐसी फिल्म महेश भट्ट की अर्थ की याद दिला देता है| इस फिल्म में कोई भी बड़ा चेहरा नही है, उसकी जरूरत भी नही थी| हर किरदार ने अपनी भूमिका को सही मायने में अंजाम दिया है| कही से भी कोई नायिका को देख् आप यह नही कह सकते फिल्म है |फिर लक्स्मि बनी राजश्री देशपांडे,या सुरंजना बनी संध्या मृदुल, या मधुरिता बनी अनुष्का मनचंदा अपने किरदारों की वजहसए याद किए जायेंगे| फिल्म की कमजोर कड़ी है फिल्म का आखरी हिस्सा कमजोर नजर आया| निर्देशक दोस्ती से थोड़े बाहर की और झाँकते है तो पुराने मुद्दे में उलजते है| और कहानी कही और बह जाती है|
 
पुष्कर ओझा