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एक बार देखने लायक है फिल्म 'लल्लूराम'

 
फ़िल्म समीक्षा: लल्लूराम
 
लेखक-निर्देशक: अमोल द्विवेदी
 
कलाकार: मोहन जोशी, दीपक शिर्के, न्यूटन लुक्का, समर्थ चतुर्वेदी, रूची तिवारी, भाग्यश्री चैबीसा
 
रेटिंग : 3.5 स्टार्स
 
 
इस हफ्ते लेखक-निर्देशक अमोल द्विवेदी की फ़िल्म 'लल्लूराम' मुम्बई महाराष्ट्र सौराष्ट्र और गुजरात में रिलीज हुई है। इस फ़िल्म को यूपी, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में रिलीज़ किया जा चुका है जिसका अच्छा रेस्पोंस मिला था. 
 
एंडी एन सैंडी फिल्म इंटरनेशनल एंड एकेडमी और एल पी जी इन्टरटेनमेन्ट के बैनर तले बनी फिल्म 'लल्लूराम' गाँव के एक मंदबुद्धि युवक की कहानी है जिसे लोग लल्लूराम कह कर पुकारते हैं. उसका एक बड़ा भाई और भाभी है. गाँव के मुखिया की बुरी नज़र इसकी भाभी पर पड जाती है. इस बीच लल्लू के भाई का मर्डर हो जाता है और इसके क़त्ल का आरोप लल्लू पर लग जाता है. इसको पागल खाने भेज दिया जाता है वहां पागलों पर पीएचडी कर रही हिरोइन से इसकी मुलाकात होती है. उसके बाद कहानी में मोड़ आता है. और फ़िल्म में काफी ड्रामों के बाद क्लाइमेक्स आता है।
अदाकारी की बात करें तो मुख्य खलनायक के रूप में मोहन जोशी और विधायक के किरदार में अदाकार दीपक शिर्के ने इसमें बेहतरीन अभिनय किया है। इस मूवी में न्यूटन लुक्का ने लल्लूराम के टाइटल रोल में अच्छी अदाकारी की है। रूची तिवारी और भाग्यश्री चैबीसा की अदाकारी भी याद रह जाती है।
फ़िल्म के लेखक/निर्देशक अमोल द्विवेदी का काम सराहनीय है, उन्होंने तमाम कलाकरों से अच्छी अदाकारी करवा ली है और बड़े मनोरंजक ढंग से ही फ़िल्म के ज़रिए कई सन्देश देने की भी कोशिश की है। 
इस फिल्म के जहाँ कई प्लस पॉइंट्स हैं वहीँ इसके कई माइनस पॉइंट्स भी हैं. फिल्म की एडिटिंग और बेहतर हो सकती थी, कई दृश्य बहुत लम्बे हो जाते हैं जहाँ एडिटर को अपनी प्रतिभा दिखानी चाहिए थी. फिल्म की अवधि काफी ज्यादा है ऐसा लगता है कि इसको कुछ और कम किया जा सकता था. 
फिल्म में आइटम सांग भी अचानक आ जाता है, हालाँकि उससे ठीक पहले एक सेड और इमोशनल सीन हुआ था और उसके तुरंत बाद इस तरह का आइटम गीत फिल्म में लाने का तुक समझ में नहीं आता? 
फिल्म के एक्शन दृश्यों पर भी और काम करने की ज़रूरत थी, कई एक्शन सीन रीयलिस्टिक नहीं लगते उनमे बहुत ज्यादा बनावटीपन साफ़ दिखता है. 
जहाँ तक न्यूटन लुक्का के अभिनय का सवाल है उन्होंने फिल्म में बेहतर काम किया है मगर उनके लुक और मेकअप पर जैसे ध्यान से काम नहीं हुआ है, उनका मेकअप और विग साफ़ तौर पर पता चल जाती है.
देवर भाभी के रिश्ते पर शक करना और दहेज प्रथा जैसे कई मामलों को छूती यह फ़िल्म एक बार देखने लायक है।