Khabar Cinema

एक विलेन : उच्ची दुकान फीकी पकवान

 
स्टार - 2/5
एक विलेन अपने गानों ,कलाकारों और प्रोमो की वजह से सभी वर्गों में एक खास उत्साह पैदा कर रक्खा था ,लेकिन यह फिल्म अपनी नकारत्मक कहानी और अधूरे प्रस्तुति करण से निराश करती हैं। 
पिछली कई फिल्मो में खलनायक को ही नायक बना कर पेश किया जा रहा हैं ,एक विलेन उसी की एक कड़ी है। 
फिल्म की कहानी शुरू होती है गुरु (सिद्धार्थ ) से जो एक बाहुबली राजनेता के यहाँ काम करता है  ,उसकी जिंदगी में प्यार आया है। एक अनजान बीमारी से ग्रस्त होकर मौत की तरफ बढ़ रही आयशा (श्रद्धा) से प्यार और शादी के बाद उसे नौ से पांच की नौकरी मिल गई है। गुरु जब यह खुशखबरी श्रद्धा को फोन पर सुना रहा होता है कि तभी श्रद्धा पर कोई हमला करता है और उसकी हत्या कर देता है! किसने यह हत्या की और क्यों? यह राज ज्यादा देर तक राज नहीं रहता और आप जान जाते हैं कि ‘साइको किलर’ राकेश महाडकर (रितेश) ने आयशा की जान ली है!

राकेश महाडकर की पत्नी उसे हमेशा दुत्कारती है की एक टेलीफ़ोन विभाग में काम करने वाले वयक्ति के साथ शादी कर उसकी ज़िन्दगी ख़राब हो गयी ,राकेश अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता है सो वो उसे तो कुछ नहीं पाता पर जो औरते उसे डॉट कर बात करती है उनकी हत्या करना शुरू कर देता है। उसका शिकार अक्सर वो औरते बनती है जिनके घर राकेश फ़ोन ठीक करने जाया करता था। 
आयशा ने भी एक बार सड़क से गुजरते हुए राकेश को दो-चार बातें सुनाई थी। नतीजे में उसे मिली मौत...!!
कहानी में कई कमियाँ हैं मसलन बार बार हेरोईन की गंभीर बिमारी का जिक्र ,उसका अचानक से ठीक हो जाना ,और सीरियल किलर का राज़ भी जल्द खुलने से लोगो का उत्साह कम हो जाता है। 
फिल्म में सिद्धार्थ ,श्रद्धा और रितेश तीनो ने अभिनय लाजवाब किया हैं ,अगर कहानी सशक्त होती तो बात और निखर कर आती। 
मोहित ने निर्देशन में कोई छाप नहीं छोड़ी सिवाय इसके की फिल्म तकनिकी रूप से बेहतर बनी हैं ,सूरी जो भट्ट कैंप से सीख कर आये कुछ छाप फिल्म में साफ़ तौर से नज़र आती है फिर भी वो बात नहीं है। लोग उनकी पिछली फिल्मो से अगर तुलना करेंगे तो उन्हें निराशा हाथ लगेगी ज़रूरत थी फिल्म की कहानी को थोड़ा सकारत्मक बनाया जाता। 
 
धीरज मिश्र