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कच्चे खिलाडी निकले सात उचक्के (स्टार १. ५)

आज किसी अमीर बनने की चाह नहीं हैं, हर वक़्ती चाहता हैं और गरीब बेरोजगार और निढले का तो सपना अमीर बनने के अलावा कुछ और हैं ही नहीं फिर रास्ता गलत ही क्यू न हो  फिल्म सात उच्चके का प्लाट भी यही हैं । 
 
फिल्म :  सात उचक्के 
स्टार : १. ५ *
कास्ट : मनोज बाजपेयी, के के मेनन, विजय राज,
अदिति शर्मा, अपारशक्ति खुराना,
अन्नू कपूर, अनुपम खेर
निर्देशक : संजीव शर्मा
निर्माता : वेव सिनेमाज
 
कहानी की शुरुवात होती है एक पागलखाने से जहा बच्ची  ( अन्नू कपूर ) का इलाज  रहा हैं, बच्ची   हिपलोटिस  में माहिर हैं,  कला का सहारा लेकर वह पागलखाने से भागने में कामयाब भी हो जाता हैं । अब कहानी ने रुख किया दिल्ली यानी पुरानी दिल्ली जहा पप्पी जाट  (मनोज बाजपई) छोटा मोटा व्यवसाय करता हैं, पर उसे लगता  दिन बहुत बड़ा आदमी बनेगा, पप्पी जिससे प्यार करता यानी सोना ( अदिति शर्मा ) से जिसे पुलिस इंस्पेक्टर तेजपाल ( के के मेनन ) भी बेहद चाहता हैं ।  सोना की माँ को पैसो से प्यार हैं ।  गांव में दीवान ( अनुपम खेर ) की हवेली हैं जिसमे खज़ाना छुपा हैं, इस बात की खबर जब पप्पी को लगती हैं तो वह एक प्लान करता हैं जिसमे पप्पी, सोना तो हैं ही साथ ही खप्पे ( अपरशक्ति खुराना ) और हग्गू ( नितिन भसीन )  शामिल हैं, और अब  इनके साथ जग्गी ( विजय राज ), अज्जी ( विपुल विग ) और बब्बे ( जतिन सरना ) भी जुड़ जाते हैं, मास्टर प्लान बनता हैं की पप्पी  हत्या जग्गी करेंगा ताकि डकैती  बाद कोई उस पर शक न कर सके । क्या वह डकैती कर पाते हैं क्या वाक्य हवेली में खज़ाना हैं, पप्पी अपना प्यार पाने में कामयाब होता हैं इन सवालो का जवाब ही है सात उचक्के । 
 
निर्देशन की बात करे तो संजीव शर्मा ने गीतकार और राइटर के रूप में कई  सारे काम किए हैं लेकिन पहली बार हिंदी फिल्म के डायरेक्शन में कदम रखा हैं, संजीव ने पुरानी दिल्ली के इलाकों को अच्छे तरीके से दर्शाया गया है। डायरेक्शन अच्छा है, फिल्म मात खाती हैं उसकी लिखावट पर , जिसकारण लंबी और बोर से लगने लगती हैं  ।  फिल्म में कई अभद्र शब्दो का प्रयोग भी खूब किया गया ।  माना की पुरानी दिल्ली में इस तरह की भाषा आम हैं पर समझ दर इशारा हैं । 
 
अभिनय की  बात करे तो मनोज बाजपेयी, के के मेनन और विजय राज जैसे मंजे हुए कलाकारों ने उम्दा अभिनय किया है। अदिति शर्मा ने भी बेबाक तरह से अपने किरदार को निभाया है। तथा अन्य कलाकरो ने भी खूब साथ दिया हैं । 
संगीत की बात करे तो साहिल सुल्तानपुरी का लिखा गाना हुस्नवाले फरेबी हुस्नवाले परदे पर अच्छा लगता हैं  कुल मिला के फिल्म का संगीत कहानी के हिसाब से अच्छा है। कुछ लोक गीतों का प्रयोग भी सही तरीके से किया गया है। निरंजन साकेत ने अच्छा म्यूजिक दिया हैं । 
 
पुष्कर ओझा