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कृतिका की अदाकारी की ख़ातिर देखने योग्य है "लाखों हैं यहाँ दिलवाले" (स्टार 2)

            फिल्म का नाम "लाखों है यहाँ दिलवाले"सुन कर ऐसा लगता है कि जैसे यह एक रोमांटिक फिल्म होगी मगर देखा जाए तो मनव्वर भगत की इस फिल्म में रोमांस सिर्फ कहानी का एक हिस्सा है इस की कथा वस्तु शादीशुदा महिलाओं की दयनीय स्थिति पर टिकी है। महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को इस फिल्म में प्रभावित रूप से पेश किया गया है।
           इस फिल्म की खास बात यह है कि इस फिल्म में १९६० के दशक के एक नहीं बल्कि ग्यारह सदाबहार गीत हैं।जिन्हे बड़ी खूबसूरती से सिचुएशन के हिसाब से फिल्माया गया है।यह कहानी है एक नौजवान अर्श (वीजे भाटिया) की ,गायकी जिसका जूनून है और अपने इस ख्वाब को पूरा करने के लिए वह मुंबई आ जाता है। वह ६० के दशक के गीतों को बहुत पसंद करता है और उन्हें ही गाता है। मायानगरी की गलियों में गाते हुए उसकी मुलाकात एक खूबसूरत लड़की स्वरा (कृतिका गायकवाड़)से हो जाती है। एक ऑर्गनाइज़र हंसमुख (अरुण बख्शी )की मदद से दोनों म्यूजिकल प्रोग्राम करने लगते हैं। मगर किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर होता है। स्वरा का अतीत सामने आ जाता है और कहानी में एंट्री होती है विट्ठल दादा (आदित्य पंचोली)की। फिर कैसे यह दो गायक प्रेमी कथा को आगे बढ़ाते हैं यह देखना रोचक और रोमांचक होगा। इस संगीतमय फिल्म के निर्माता,निर्देशक,लेखक मनव्वर भगत हैं जबकि कलाकारों में आदित्य पंचोली,वीजे भाटिया,कृतिका गायकवाड़,अरुण बख़्शी ,किशोरी शहाणे इत्यादि ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं।
            विट्ठल दादा के किरदार को जिस गंभीरता से आदित्य पंचोली ने अदा किया है वह काबिल ए तारीफ़ है हालाँकि उनका रोल ऐसा है जिससे दर्शक उनके चरित्र से नफरत करेंगे मगर आप उनके अभिनय से प्यार करने लगेंगे। एक ज़ालिम पति और एक टपोरी भाई के किरदार को उन्होंने प्रभावपूर्ण रूप से परदे पर उतारा है चाहे उनकी शारीरिक भाषा हो या फिर आँखों का कमाल मगर उन्होंने भरपूर असर छोड़ा है।
         कृतिका गायकवाड़ ने इस फिल्म के द्वारा बॉलीवुड में एंट्री मारी है मगर उनकी अदाकारी सराहनीय है उनमे अभिनय क्षमता कूट कूट कर भरी है और स्वरा के किरदार को उन्होंने जीवित कर दिया है। पति के ज़ुल्म की शिकार एक औरत के किरदार को कृतिका ने बड़ी समझदारी से निभाया है और आप देखकर चौंक पड़ेंगे कि कैसे एक प्रताड़ित महिला के दर्द को उन्होंने बिना संवाद के अपने चेहरे के हावभाव से दर्शाया है बॉलीवुड के निर्माता निर्देशकों को कृतिका को और अवसर देना चाहिए उनमे किरदार को अदा करने की ज़बरदस्त क़ाबलियत मौजूद है।
       फिल्म के कई डायलॉग प्रभावित करते हैं और सोचने पर भी मजबूर करते हैं। जब स्वरा अपने पति से कहती है "पत्नी की मर्ज़ी के खिलाफ ज़बरदस्ती उससे शारीरिक सम्बन्ध बनाना भी तो बलात्कार है "या फिर जब वह यह कहती है "हर शादी एक समझौता होती है जिसमे ख़ुशी भी मिलती है और ग़म भी लेकिन मुझे विवाह के बाद सिर्फ ग़म ही मिले हैं "या फिर मंगलसूत्र को हाथों में लेकर जब स्वरा की ज़बान से यह संवाद निकलता है "यह ज़बरदस्ती का बंधन क्यों?" तो देश में महिलाओं के दर्द को वह बखूबी रेखांकित कर रही होती है।
       एडिटिंग की कमज़ोरी कई दृश्यों में खुल कर सामने आ जाती है मगर देखा जाए तो अश्लीलता और जिस्म की नुमाइश से दूर एक साफ सुथरी फिल्म है जिसे दर्शकों को एक बार देखना चाहिए। कृतिका की परफॉर्मेंस की ख़ातिर तो इसे एक मौका देना ही चाहिए।