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गैंग्स ऑफ वासेपुर के सामने मेरठिया गैंगस्टर फीकी (स्टार 2)

               अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के स्क्रीन राइटर जीशान कादरी ने अब डायरेक्शन की और रुख किया| लगता है उन्हें गैंगस्टर सब्जेक्ट ही पसंद है| मेरठ जैसे छोटे शहर की पृष्ठभूमि के बीच आज की शिक्षित युवा पीढ़ी की मानसिकता और रातों-रात करोड़पति बनने की चाह रखती फ़िल्म की पृष्ठभूमिपर बनी फ़िल्म मेरठिया गैंगस्टर,  छह दोस्तों निखिल, अमित, संजय फॉरनर, सनी, गगन और राहुल चैलेंजर स्टडी कंप्लीट करने के बाद अच्छी नौकरी की तलाश में लग जाते हैं। नौकरी की चाह में यह सभी एक ऐसे गिरोह में फँस जाते है, मोटी रकम लेकर इन्हें नौकरी का ऑफर लेटर तो देता है, लेकिन यह सब जाली निकलता है। इसके बाद सभी रातों-रात मोटी कमाई करने की चाह में किडनैपिंग, लूटपाट के धंधे को अपनाते हैं। इनके ग्रुप में मानसी भी शामिल हो जाती है जो एक बड़ी कंपनी में नौकरी करती है और गिरोह के एक सदस्य की प्रेमिका है। मानसी की कंपनी के एक बड़े अधिकारी जयंती लाल जैन और उसके बाद कंपनी के मालिक का किडनैप करके मोटी फिरौती वसूल करना चाहती है, एक के बाद एक हो रही घटनाओं को रोकने के लिए जांबाज पुलिस इंस्पेक्टर आर के सिंह की ड्यूटी लगाई जाती है। जीशान थोड़ा और होम वर्क करते तो स्क्रिप्ट और बेहतर हो सकती थी। फिल्म का क्लाइमैक्स फीका सा दिखता है।  यह फिल्म अनुराग की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के सामने कहीं नहीं फीकी नजर आती है. अभिनय के मामले में जयदीप अहलावत की तारीफ करनी होंगी, साथ प्रॉपर्टी डीलर मामा के रोल में संजय मिश्रा का जवाब नहीं। अन्य किरदारों ने भी अपने-अपने रोल को ठीक-ठाक निभाया। संगीत भी  कुछ खास पसंद नही आया  ऐसा लगता है गाने सिर्फ फिल्म की रफ्तार को कम करने का काम ही करते हैं। कमजोर स्क्रिप्ट और इंटरवल से पहले फिल्म की बेहद धीमी गति आपके सब्र का इम्तिहान लेती है।  
 
पुष्कर ओझा