हमने अक्सर गणपति और नवरात्री में या किसी की शादी और बर्थडे पर बैंजो वालो को बजाते देखा ही होंगा, यहाँ तक कई बार तो नाचे भी होंगे, पर कभी इन बैंजो वालो की निजी ज़िन्दगी पर किसी ने भी गौर किया। जवाब ज्यादातर न ही होंगा , पर निर्देशक रवि जाधव ने इनकी ज़िन्दगी के हर उस पहलु पर नज़र रखी और रितेश देशमुख, नरगिश फकरी के साथ मिल फिल्म बैंजो ही बना दी ।
फिल्म की कहानी मुम्बई के रहने वाले बैंजो प्लेयर नन्द किशोर उर्फ तराट (रितेश देशमुख) की है जो वहां के लोकल मंत्री के लिए काम भी करता है, साथ ही अपने तीन दोस्तों पेपर, ग्रीस और वाजा के साथ गणपती व् नवरात्री में परफॉर्म भी करता है. तभी न्यूयॉर्क से क्रिस (नरगिस फकरी) मुम्बई आती है जिसका मकसद यहां के लोकल बैंजो प्लेयर्स के साथ 2 गाने रिकॉर्ड करना है, जिनको वो न्यूयॉर्क के एक म्यूजिक कॉम्पिटिशन में भेज सके. यही से कहानी एक मोड़ लेती हैं, तराट को क्रिस से प्यार होता हैं, पर क्रिस के सपने कुछ अलग ही हैं, कई सारे ट्विस्ट और टर्न्स आते हैं, और एक रिजल्ट सामने आता है, अब वह क्या हैं आपको फिल्म देखनी पड़ेंगी।
स्क्रिप्ट की बात करे तो यह वास्विकता के करीब ले जाती हैं, इस फिल्म में वह सारे इलिमेंट हैं, इमोशनल, कॉमेडी के साथ रोमांच भी नज़र आता हैं, लेकिन थोड़ी कही कमी नज़र आती हैं। फिल्म इंटरवल के बाद आप सीट छोड़ कर उठने की कोशिश भी करोंगे पर आप उठ नहीं पाओगे , इस कदर बांध कर रखती हैं कुछ खास वर्ग के दर्शको को तो यह फिल्म खूब पसंद भी आएँगी ।
अभिनय की बात करे तो रितेश देशमुख ने उम्दा अभिनय किया हैं उनके लुक, उनके एक्सप्रेशन्स ऐसा प्रतीत होंगा की वाकय कोई बैंजो वाला ही हैं, नरगिश फकरी ने भी इस बार बेहतरीन अभिनय किया हैं उनकी दांत देनी होंगी और उन्हें इस तरह के रोल ही करने चाहिए । अन्य कलाकरो का भी अच्छा अभिनय नज़र आया ।
कमजोर कड़ी की बात करे तो गलती किससे नहीं होती, कुछ गलतियों को माफ़ भी किया जा सकता है, मशलन फिल्म इंटरवल के पहले काफी धीमी लगती हैं जिसे थोड़ा फ़ास्ट करने की जरुरत थी, साथ ही कुछ गाने कम ही होते तो ठीक था माना फिल्म का नाम बैंजो हैं पर यह पॉसिबल था ।
गलतियों को नज़र अंदाज कर फिल्म देखने में कोई हर्ज नहीं हैं और न ही समय और पैसो की बर्बादी हैं। बाकि आपकी मर्जी आखिर दर्शक ही तो असली समीक्षक होते हैं ।
पुष्कर ओझा