फिल्म : जीना इसी का नाम हैं
कास्ट : हिमेश कोहली, मंजरी फडनिस, अरबाज़ खान, आशुतोष राणा और प्रेम चोपड़ा
निर्देशक : केशव पन्नेरिया
निर्माता : पूर्णिमा मीड और सैंटन मीड
श्रेणी : फॅमिली ड्रामा
स्टार : २
महिला शक्तिकरण की फिल्में कई देखी होंगी यहाँ तक राजा महराजाओं का वह शासन जिसमे राजा की प्रजा दुखी है, पर राजा अपने में मस्त, इन्ही विषयो पर फिल्म जीना इसी का नाम हैं । जिसका निर्देशन किया केशव पन्नेरिया ने ।
कहानी की बात करते हैं शुरू कहा से करू यह पशोपेश में हूँ , खेर आलिया ( मंजरी फडनिस ) अपने पिता और दो भाइयो के साथ बड़ी होती है, पर माता पिता आलिया से नहीं बल्कि अपने दोनों पुत्रो से खूब प्यार करते है, आलिया को बचपन से ही लेखन का शौक रहता है, जवानी आते आते उसे कॉलेज की बुक लिखने का अवसर प्राप्त होता हैं, और आलिया को कुंवर विक्रम प्रताप सिंह (आशुतोष राणा) का इंटरव्यू करने को कहा जाता हैं, कहानी थोड़ी से मोड़ लेती है इंटरव्यू के साथ कुंवर विक्रम जी को प्यार हो जाता है, और फिर शादी, पर इस शादी से आलिया खुश नहीं हैं, क्योकि आलिया कॉलेज में अलेक्स ( हिमांश कोहली ) से प्यार करती थी, और एक वजह की कुंवर विक्रम प्रताप सिंह का स्वभाव का बड़ा ही क्रूर था, उसे पैसा, पावर और अपने रुतबे पर बड़ा ही हर्ष था । वह अपने आगे किसीकी नहीं चलने देता हैं, उसे सिर्फ और सिर्फ पैसो से प्यार है, यहाँ आलिया को साथ मिलता हैं, लक्ष्मी ( सुप्रिया पाठक ) का , जो कई साल से राजा के दरबार में दासी है, वह खुद भी भुक्तभोगी हैं, लक्ष्मी ही आलिया को यहाँ से भागने का निर्णय लेती हैं और कामयाब होती हैं, अब यहाँ इंट्री हुई एन आर आई आदित्य कपुर ( अरबाज़ खान ) की एक मुलाकात में आदित्य को प्यार हो जाता आलिया से और फिर अमेरिका में आलिया का जॉब और उसकी बेटी न जाने कहा कहा कहानी का मोड़ लेती है और आखिर में। .. जीना इसी का नाम हैं। ..
बात करते है निर्देशन की काफी कमजोर नज़र आया केशव पन्नेरिया ने कास्ट बड़ी की पर कहानी को ठीक से पिरोने में सक्षम नहीं हो पाए, कई सीन तो इतने बड़े लगे लगा की यह सीन आखिर क्यों पिरोये गए, २ घंटे ७० मिनट की इस फिल्म को छोटा कर २ घंटे की कर दी होती तो शायद यह फिल्म और अच्छी होती । फिल्म के लोकेशन और सिनेमेटोग्राफी की तारीफ करनी होंगी ।
अभिनय की बात करते है फिल्म में मंजरी फडनिस ने सरहानीय अभिनय किया हैं, आशुतोष राणा ने भी काफी अच्छा अभिनय किया, हिमेश कोहली, और अरबाज़ खान को फिल्म में क्यों यह सवाल बस मन में ही रह गया, यहाँ तक रती अग्निहोत्री एक सीन के लिए ही है, प्रेम चोपड़ा ने अपने किरदार को खूब निभाया, सुप्रिया पाठक ने भी अच्छा अभिनय किया ।
कमजोर कड़ी फिल्म की कमजोर कड़ी है कहानी लगा कभी महिला शक्ति कारन , तो कभी ब्रुनहत्या तो कभी राजा का कुशासन कहानी किस और मोड़ लती है आप समाज ही नहीं पाते है, आरतीसे से ज्यादा कहानी पर ड़याँ दिया होता तो शायद अच्छा होता
संगीत की बात करना नहीं करना कुछ फर्क नहीं पड़ता ।
मेरी माने तो टाइम और पैसा दोनों की बर्बादी है जीना इसी का नाम है ।
पुष्कर ओझा