फिल्म : दिल बेचारा
कास्ट : सुशांत सिंह राजपूत, संजना संघी और साहिल वैद
निर्देशक : मुकेश छाबरा
संगीत : ए आर रहमान
स्टार : 2. /5
समीक्षक : पुष्कर ओझा
आपको सांग "तेरे लिए सारी उम्र जागू" 1992 में फिल्म "याद रखेंगी दुनिया" आदित्य पंचोली और राधा सेठ के अभिनय से रची आयी थी सुशांत सिंह राजपूत की आखरी फिल्म दिल बेचारा की कहानी भी कुछ हद तक इसी फिल्म की याद दिलाता है, दोनों को कैंसर हैं एक हसी ख़ुशी अपनी मौत का इंतज़ार कर रहा है तो एक को हर दिन लगता है की बस आज का दिन आखरी दिन हैं | इस फिल्म में सुशांत सिंह का एक डायलॉग हैं 'जन्म कब लेना और मरना कब है ये हम डिसाइड नहीं कर सकते, लेकिन कैसे जीना है वो हम कर सकते हैं।'
कहानी की बात करते हैं कहानी की शुरुवात होती हैं अपने परिवार के साथ जमशेदपुर में रहने वाली कीज़ी बासु (संजना संघी) से जिसे थाइरॉयड कैंसर है हमेशा एक ऑक्सीज़न सिलेंडर ( पुष्पेंद्र ) लेकर घूमती है। कीजी की ज़िन्दगी में एक दिन अचानक इमैन्युल राजकुमार जूनियर उर्फ मैनी ( सुशांत सिंह राजपूत ) आता हैं, मैनी को भी कैंसर पर वह अपनी लाइफ को हसी ख़ुशी और भरपूर एन्जॉय के साथ गुजारता हैं | कीजी और मैनी की दोस्ती और फिर प्यार होता है, कीजी की आखरी तम्मना है एक सिंगर की तलाश , जिसे मैनी पूरा करता है, इस सिंगर की खोज में पेरिस तक कीजी , मैनी पहुंच जाते हैं, यहाँ से फिल्म में ट्विस्ट & ट्रन लेती हैं कई इमोशन सीन नज़र आते हैं | क्या पेरिस में सिंगर मिलता है, क्या कीजी का अधूरा सपना पूरा होता है, पेरिस से लौटने के बाद क्या होता है, इसके लिए आपको फिल्म दिल बेचारा देखनी होंगी |
अभिनय की बात करते हैं सुशांत सिंह राजपूत की आखरी फिल्म हैं उनके अभिनय की तारीफ करने में कोई हर्ज हैं सुशांत ने एक अच्छी अदाकारी की हैं वही संजना संघी की यह पहली फिल्म हैं पर उन्होंने में अपने किरदार को टस से मस होने नहीं दिया संजीदा रोल को निभाने में कामयाब हुई | वही कीजी की माँ के रोल में स्वास्तिका मुखर्जी और पिता का किरदार शाश्वत चटर्जी बेहतरीन अभिनय किया है, हसाया भी और रुलाया भी साहिल वैद, सैफ अली खान का एक अलग और मजेदार रोल हैं जो फिल्म ख़त्म होने के बाद भी आपको याद रहेंगा |
निर्देशन की बात करते हैं मुकेश छाबरा कास्टिंग के मामले में वह सटीक बैठते है पर निर्देशन के मामले में वह थोड़े कमजोर नज़र आये हा इमोशनल नज़र आया | पर बहुत कुछ मिस होता नज़र आया शुरुवात अच्छी हुई पर धीरे धीरे कमजोर होती नज़र आयी यह फिल्म |
फिल्म संगीत की बात करते है ए आर रहमान का है काफी मधुर और सुहाना संगीत हैं एक धुरा गाना फिल्म की कहानी के साथ चलता है, जिसी बार बर परोसा गया है पर अच्छा लगता है, बैकग्राउंड संगीत रेहमान का संगीत को तारीफे काबिल है |
कमिया काफी है फिल्म की कहानी कई जगह अटक अटक के आगे बैठती नज़र आती है, फिल्म की कहानी को थोड़ा सिमटा दिया होता तो शायद फिल्म और निखार के आती कहानी में कीजी बसु का परिवार नज़र आया पर मैनी का परिवार अंतिम क्षण में नज़र आया पर कौन है कुछ एक्सप्लेन ही नहीं किया गया कुछ सीन को लम्बा खींचा गया | पर एक बार देखी जा सकती हैं |