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बाजीराव ने मस्तानी से मोहब्बत की.... स्टार 3.5

                दिलवाले के साथ इस शुक्रवार को निर्माता - निर्देशक और लेखक संजय लीला भंसाली की बहुचर्चित  ऐतिहासिक फ़िल्म बाजीराव मस्तानी भी रिलीज हुई| यह एन एस इनामदार की उपन्यास राउ पर आधारित है| फ़िल्म की कहानी उस समय की है जब छत्रपति शिवाजी महाराज के पोते शाहू महाराज के हाथों में मराठा साम्राज्य का ध्वज लहरा रहा था, जिनके पेशवा थे बाजीराव बल्हाड| चीते की चाल, बाज़ की नजर और बाजीराव की तलवार संदेह नही करते कभी भी मात दे सकती है|  ब्राह्मण कुल के बाजीराव में तैज़ तो था ही, तलवार में बिजली सी हरकत और आँखों में एक ही सपना दिल्ली पर मराठाओं का लहरता हुआ ध्वज|  बाजीराव ने 41 लडाईयां लड़ी और एक में भी वह पराजित नही हुए उनकी हमेशा जीत हुई उसका कारण उनका नेतृत्व, उनकी राजनीति, उनकी रणनीति और उनका युध्द कौशल|तभी तो इनकी बहादुरी के चर्चे दक्षिण के निज़ाम से लेकर दिल्ली तक होने लगे थे| 
          जितने बहादुर बाजीराव उतनी ही तैज़ निडर बहादुर मस्तानी की प्रेम की एक छोटी कहानी को संजय लीला भंसाली ने पिरोया है| बुंदेलखंड  की राजकुमारी मस्तानि जब बाजीराव से बुंदेलखंड को बचाने मद्दत माँगने आती है और बुदेलखंद के राजा छ्त्रसल को बाजीराव मद्दत कर जीत हासिल करवाते है, यही से मस्तानी और बाजीराव में प्रेम हुआ, बुदेल्खंद का एक रिवाज है की अगर किसी ने कटार भेट दी तो उससे शादी हो गई इस बात से बेखबर बाजीराव ने मस्तानी को कटार भेट कर दी और मस्तानी पूना के शनिवार वाडा के लिए रवाना होती है, यह मस्तानी को कई अपमानिक जनक शब्दों का समाना करना पड़ता है|
      यहा बाजीराव शादीसुदा है उनकी पत्नी काशीबाई से उनका एक बेटा भी है|ब्राह्मण और मुसलमान मस्तानी की शादी से समाज उनका विद्रोह भी करता है|बाजीराव को तय करता है और मस्तानी के लिए मस्तानी महल तैयार करता है ताकि वह यही राह सकती है यहा तक जब मस्तानी बेटे को जन्म देती है और उसका नाम कृष्णा रखा जाता है पर समाज इस बात से इनकार करता है तो बाजीराव उसका नाम बदल कर शमशेर बहादुर रख लेता है| उस समय की राजनीतिक और सामाजिक स्थितियों पर संजय लीला भंसाली  ने टिप्पणियां पेश करने में कोई कसर नही छोड़ी है |
  संजय लीला भंसाली ने वाडा, महल, युद्ध के मैदान का चित्रण करने के लिए  गहन बारीकियों पर काम किया है| उन्होंने बाजीराव के समय के वास्तु कला, युद्ध कला, वेश भूषा, आचरण, राजनैतिक, समाज और पारिवारिक मर्यादाओं की कहानी को सटीक समावेश किया है| वह भव्य सेट के तो माहिर है ही, उन्हें बिलकुल हिचक नही होती है, उनकी एक अलग ही शैली है|  उन्होंने उस कला को देखने के साथ ऎसे साक्श भी सामने रखे है जो योग लगते भी है|   
 वाकय भंसाली ने बाजीराव, मस्तानी और काशी बाईं के किरदारों को जीवित किया है| और इन्हे सहयोग देने बाजीराव की माँ, चीन और नाना जैसे छोटी भूमिका ने भी अपने किरदारों में जान भूख दी है| बाजीराव के किरदार में रणवीर सिंह, मस्तानी दीपिका पादुकोण और काशी बाईं प्रियंका चोपड़ा के किरदारों में गंभीरता और गहराई नजर आती है|
       फ़िल्म के अखारी में संजय डगमगा गए, सीन लंबे हो गए, और खिचे हुए लगने लगे| फ़िल्म के संगीत की बात करे तो 'पिंगा' और 'मल्हारी' हिट हो ही चुके है और भी गाने है पर लुभावने नही| 
  
  
 
पुष्कर ओझा