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भविष्य की चिंता करता युवा को दर्शाने में असक्षम फिल्म बार बार देखो (स्टार २ )

         आज का युवा अपने करियर को लेकर चिंतित रहता हैं, उसे अपने मुकाम तक पहुचने की खूब चाह रहती हैं, इस कारण वह शादी से लेकर अपने परिवार से भी कोसो दूर हो जाता हैं, उसे बस अपने करियर के अलावा और कुछ नहीं नज़र आता , निर्देशिका  नित्या मेहरा की यह पहली फिल्म हैं, नित्या  ने इससे पहले  'लाइफ ऑफ अ पाई' और 'द रिलक्टेंट फण्डामेंटलिस्ट' जैसी फिल्मों में असिस्टेन्ट डायरेक्टर के रूप में काम किया है, नित्या की यह पहली कोशिश सक्षम हुई , समीक्षा कर जानते हैं । 
      कहानी दिल्ली के रहने वाले गणित  प्रोफेसर जय वर्मा (सिद्धार्थ मल्होत्रा) की है जो अपनी बचपन की दोस्त दिया कपूर (कटरीना कैफ) को प्यार करता हैं  और दोनों की बस शादी होने वाली होती है उसी समय  जय को कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से भी ऑफर आता है लेकिन दिया के पिता (राम कपूर) नहीं चाहते की जय विदेश जाए.  दरअसल जय को अपने करियर की चिंता  सताती हैं जिससे  जय को शादी के नाम से चिढ़ हो जाती  है, यहीं से कहानी आगे बढ़ती है और अचानक जय को अपने भविष्य में भी जाने का मौका मिलता है.  जहां उसको रिलेशनशिप के असली मायने की समझ आती है. भविष्य में दिया से मिलकर जय को जिंदगी जीने का एक अलग नजरिया देखने को मिलता है. काफी ट्विस्ट और टर्न्स आते हैं, अब जय को भविष्य  में ऐसा क्या नज़र आता क्या वर्तमान में जय को करियर या शादी किसे चुनता , यही है देखने  आपको २.२१ मिनिट तक फिल्म देखनी होंगी  
       बात करे स्क्रिप्ट नित्या ने युवाओ के लिए एक सवाल जरूर खड़ा कर दिया की वह अपने करियर के पीछे भागते हुए अपने परिवार को पीछे छोड़ दिया हैं नित्या  ने फिल्म की स्क्रिप्ट को एक अलग अंदाज में दर्शाने की कोशिश की  है, इंटरवल के पहले  की कहानी दिलचस्प लगती है लेकिन इंटरवल के बाद काफी बोर करती  है. हा  कुछ डायलॉग्स अच्छे हैं,  फिल्म में अच्छे लोकेशंस और इक्का दुक्का गानों के अलावा कुछ भी ऐसा नहीं है । 
     अब बात करे अभिनय की सिध्दार्थ मल्होत्रा ने इस फिल्म में यंग से लेकर बूढ़े तक का किरदार निभाते नज़र आये पर सटीक बैठ  नहीं पाए ,  वही कैटरिना ने भी हर उम्र का किरदार निभाया पर यंग का छोड़ बाकी जगह उनके बाल सफ़ेद नज़र आये पर वह नहीं, राम कपूर का वही चिल्लाना जो रास  ही नहीं आता । 
       बात करे कमजोर कड़ी की नित्या ने आज कल और आने वाले कल से झुंजते युवा को दिखाने में कमजोर रही फिल्म की रीड की हड्डी उसकी कहानी होती हैं जो कमजोर थी, यहाँ तक स्क्रिनप्ले भी काफी कंफ्यूज करता हैं । 
     बात संगीत की फिल्म में आखिरी गाना काला चश्मा को छोड़ दूसरे गाने ठीक हैं । 
 
 
पुष्कर ओझा