Khabar Cinema

भूतकाल और वर्तमान काल में उलझ कर रह गई फिल्म : मिर्जिया (स्टार १. ५)

         राकेश ओमप्रकाश मेहरा के ग्राफ की बात हम हैं फिल्म अक्स से उन्होंने शुरुवात की फिल्म आपको पता ही हैं, फिर ले आए फिल्म रंग दे बसंती जिसे देख खूब वाह वाह बटोरी, उसके बाद आई  फिल्म दिल्ली ६ जिसके बारे में भी आपको पता हैं, और फिर ले आए फिल्म भाग मिल्खा भाग जिसे देख सभी का मन मोह गया था और अब ले आए है मिर्जया ........  
स्टार : १.५ 
कास्ट : हर्षवर्द्धन कपूर, सैयामी खेर, के के रैना, ओमपुरी
निर्देशक : राकेश ओमप्रकाश मेहरा 
निर्माता :  राकेश ओमप्रकाश मेहरा,  सिनेस्तान
         कहानी की शुरुवात होती हैं राजस्थान की पृष्ठ भूमि से जहा बचपन से ही मुनीष (हर्षवर्द्धन कपूर) और सुचित्रा (सैयामी खेर) एक दूसरे से साथ स्कूल जाते हैं, दिन मुनीश होम वर्क नहीं  सुचित्रा की बुक मास्टर को दिखाता मास्टर यह बात समाज जाते है और सुचित्रा को दंडित करता है, मुनीष से यह बर्दास्त होता और वह मास्टर का खून कर देता है और जेल चला जाता हैं पर  वह फरार हो जाता हैं और यहाँ  वेदेश में पढने के लिए भेज देते है,दोनों जवान गए और फिर राजस्थान में मिलते हैं यह है वर्तमान अब भूतकाल की बात करे तो मिर्जया और साहिबा दोनों एक-दूसरे से बेइंतहा प्यार करते हैं। मिर्जया  जैसा तीरंदाज कोई नहीं होता था। मिर्जया और साहिबा का प्यार, साहिबा के घरवालों को मंजूर नहीं था। जिसकी वजह से उसका रिश्ता कहीं और तय कर दिया था। इस कारण मिर्जया अपनी साहिबा को लेकर भागता है, लेकिन एक वक्त के बाद साहिबा उसके तीरों को तोड़ देती है । फिर आते है वर्तमान में यहाँ भी सुचित्रा  की शादी करण से तय हो जाती है,  आगे आपको  होंगी, क्या मुनीष सुचित्रा फिर एक हो पाते हैं उनका प्यार परवान चढ़ता है की नहीं । 
          निर्देशन की बात करते हैं राकेश ओपप्रकाश मेहरा ने इससे पहले फिल्म रंग दे बसंती में भी दो कहानियो को खूब अच्छी तरह से पिरोया था पर इस बार वह चूक गए, आप भूत और वर्तमान में ऐसे उलझ जायेंगे की आपको समझ नहीं आएंगे, देखने लायक है तो फिल्म का लोकेशन बड़ी ही खूबसूरती से पिरोया हैं, यहाँ तक शॉट्स भी खाफी सुनहरे लिए हैं खासकर  युद्ध के सीन तो लाजवाब लिए गए हैं । गुलज़ार साहेब ने जिस सोच से लिखा शायद आज का युवा वर्ग नकार सकता हैं । फिल्म  २ घंटे ९ मिनट की हैं पर देखते वक़्त काफी लम्बी नज़र आती हैं । 
        बात करते हैं अभिनय की तो हर्षवर्द्धन कपूर और सैयामी खेर दोनों कलाकारों में वह चार्म नज़र नहीं आया जिसकी उम्मीद थी, न तो ठीक से डायलॉंग बोले न ठीक से एक्टिंग लगा जैसे महरा साहेब ने लोकेशन पर ज्यादा ध्यान दिया बजाय इन की एक्टिंग पर, अगर दिया होता तो शायद और निखार के आते हर्षवर्द्धन कपूर और सैयामी खेर ।  बाकि अभिनेताओ ने ठीक ही अभिनय किया । 
         बात करे संगीत की तो संगीत कर्ण प्रिय हैं गुलजार की लिखावट, शंकर एहसान लॉय का संगीत वाकय  लाजवाब हैं, उस पर भी वह गायको ने गानो में रूह झोक दी हो । बस गलती यही हैं की आप उम्मीद नहीं करोंगे वहा गाने आ जाते हैं, जिसके कारण  भी कहानी खिंची हुई लगने लगती हैं । 
 
पुष्कर ओझा