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मियां भाई की डेयरिंग नज़र आई पर रईस की रईसीयत.... ( स्टार ३/५ )

         रईस की कहानी काल्पनिक हैं, एक शराब का धंधा करता हैं, कहा यह भी जा रहा था की यह एक सत्य घटनाक्रम को दर्शाया गया हैं, खेर इस विषय पर बात नहीं करते, रईस को देख मैं अपने बचपन में चला गया, वजह भी ७० और ८० के दशक में अमूमन इस तरह की फिल्में देखने मिलती थी, नायक सारे गलत तरीके के काम करने में माहिर है, पर वह गरीबो का  साथ कभी नहीं छोड़ता, उनके दुःख सुख में सदैव वह एक मसीहा बन कर खड़ा रहता हैं । आप में से कइयो ने इस तरह की फिल्में  देखी ही होंगी  ।  
 
फिल्म :  रईस 
श्रेणी  : एक्शन क्राइम थ्रिलर
निर्देशक : राहुल ढोलकिया
कास्ट    : शाहरुख खान, माहिरा खान, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, मोहम्मद जीशान अयूब
स्टार     : 3/5 
निर्माता : एक्सेल एंटरटेनमेंट, रेड चिलीज।
संगीत  : राम संपत
 
   कहानी की बात करते हैं रईस (शाहरुख खान)एक गरीब परिवार में जन्मा , अपनी अम्मी (शीबा चड्ढा) के साथ रहता हैं, जो बोटल और कचरा चुन कर अपना और रईस का गुजारा करती हैं,  स्कूल से ही रईस का दिमांग तेज दौड़ता हैं, पर उसकी आँखे थोड़ी कमजोर हैं, चश्मा खरीदने के भी पैसे अम्मी के पास नहीं हैं,रईस को पैसे कमाने हैं , वह धंधे की तरफ रुख करता है, रईस ने पहले देशी और फिर विदेशी शराब सप्लाई करना शुरू कर दिया वह भी अपने स्कूल के बैग में भरकर, वक़्त बिता और रईस ने जवानी के साथ अपना खुद का धंधा शुरू करने का प्लान किया अपने दिमाग और डेयरिंग से वह जल्द  शराब का बहुत बड़ा सप्लायर बन गया, साथ ही रईस के कई दुश्मन और दोस्त भी बनते गए, कहानी में  मोड़ तब आता है, जब एस पी मजूमदार  (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) की पोस्टिंग रईस के इलाके में होती है, मजूमदार एक कड़क और ईमानदार पुलिस वाला है, जिसे रिश्वत और शराब दोनों से नफ़रत हैं, लेकिन रईस रिश्वत देने में  और शराब सप्लाई में  रईस दोनों में रईस थे । पर मजूमदार के आगे उनकी एक न चली, मजूमदार ने कई बार कोशिश की पर रईस तक पहुँच ही नहीं पाते थे, कई जगह मजूमदार का ट्रांसफर भी होता हैं पर मजूमदार भी रईस का दामन छोड़ने से रहा । इस कहानी में कई घुमाव आते हैं , यहाँ तक अगर मै गलत न हूँ तो गोधरा कांड, गुजरात के हिन्दू मुस्लिम दंगे, मुम्बई के बम  ब्लास्ट में गुजरात का जिक्र जैसे कई घटनाएं परदे पर नज़र आती हैं आखीर मिया भाई की डेयरिंग कितनी कारगर होती है, इसके लिए आपको फिल्म रईस की और रूख करना होंगा । 
      बात करते हैं निर्देशन की निर्देशक राहुल ढोलकिया लगा जैसे किसी के हाथ की कठपुतली हो, काफी सरहानीय होता अगर इस तरह की कोई नौबत न आती, देख कर कुछ ऐसा ही लगा, हा के. यू. मोहनन की सिनेमेटोग्राफी के साथ  ८० के दशक का पूरा नज़ारा सामने नज़र आता हैं, हालांकि इंटरवल के पहले कई सीन लंबे और उबाऊ लगे, ठीक था लगा इंटरवल के बाद फिल्म रफ़्तार पकड़ेंगी पर नहीं वह तो और सुस्त हो गई कम से कम इंटरवल के बाद भी फिल्म को संभाला होता तो शायद फिल्म की तरफ करने से नहीं चुकता , हा फिल्म के डायलॉग्स  की तारीफ करनी होंगी। 
      अभिनय की बात करते है, शाहरुख़ खान की तारीफ तो करनी होंगी पर आप लोंगो ने शाहरुख़ की फिल्म 'रामजाने' और फिल्म 'जोश' देखी  होंगी लगा शाहरुख़ का वही रूप रईस में नज़र आया, इस बार फिर नवाज़ भाई ने कमाल कर दिया उन्होंने साबित कर दिया की सामने वाला भले सुपरस्टार हो पर उनके सामने फीके  नहीं पड़ते हैं, नवाज़ भाई की डायलॉग्स  डिलीवरी हो या अभिनय कमाल का नज़र आया , मुझे फिर लिखना पड़ता है, क्या हमारे देश में अभिनेत्रीयो की कमी है, जो माहिर खान को ले आये, इस जगह प्रियंका चोपड़ा, दीपिका या इनमे से कोई नहीं तो किसी न्यू  कमर को ही मौका  दे देते, कम से कम माहिरा से अच्छा अभिनय करती, साथ ही अन्य कलाकार मोहम्मद जीशान अयूब, अतुल कुलकर्णी और बाकी एक्टर्स का काम भी सरहानीय हैं, 
      बात करते है संगीत की  'लैला मैं लैला' गाने ने तब भी धूम मचाई और आज भी, यही एक गाना है, जो फिल्म के साथ सूट करता है, बाकी के गाने ठीक ठाक  ही है जैसे 'जालिमा' गाना । एक बात की तारीफ करनी होंगी फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर काफी अच्छा है। 
     
     आप शाहरुख़ खान के डाय हार्ड फैन हैं तो ही आपको फिल्म पसंद आएंगी, है नवाज भाई के लिए तो एक बार देखी  जा ही सकती हैं । 
 
पुष्कर ओझा