Khabar Cinema

रिलेशनशिप का नया ज्ञान देती है "प्यार का पंचनामा 2" (स्टार 3)

                     सन् 2011 में फिल्म "प्यार का पंचनामा" के बाद अपने चाहने वालों के लिए निर्देशक लव रंजन "प्यार का पंचनामा 2" लेकर आए हैं। लव ने यंग ऑडियंस की नस  को तो पहले पकड़ ही चुके थे, और इस बार तो कोई कसर ही नही छोड़ी है|  कहानी  दिल्ली के तीन यंग युवकों की है  अंशुल उर्फ गोगो (कार्तिक आर्यन), सिद्धार्थ उर्फ चौका (सनी सिंह निज्जर) और तरण उर्फ ठाकुर (ओमकार कपूर) जो दिल्ली में रहते है, नौकरी करते है और प्रति दिन खूब खूब एंजॉय करते हैं। एक दिन तीनों युवक एक शादी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए मेरठ जाते हैं, जहां इन सभी की जिंदगी में यू टर्न आता है। इस आयोजन के दौरान ही तरुण को रुचिका (नुशरत भरूचा) का साथ मिल जाता है, तो वहीं सिद्धार्थ की मुलाकात सुप्रिया (सोनाली सहगल)। इसके अलावा अंशुल भी सिंगल नहीं रहता और उसकी लाइफ में कुसुम (इशिता शर्मा) आ जाती है। अब तीनों दिल्ली वापस लौटकर आए दिन अपनी-अपनी गर्लफ्रेंड को घर लाने लगते हैं और एक लिव इन रिलेशन की तरह सभी अपनी-अपनी जिंदगी एंजॉय कर रहे होते हैं। एक डेढ़ साल की लिव-इन-रिलेशन में आख़िर ग्रहण लग ही जाता है, और धीरे-धीरे तीनों दोस्तों के लाइफ पार्टनर की हकीकत सामने आने लगती है| फ़िल्म में कई ट्विस्ट के साथ कई मोड़ लेती है, लव रंजन ने यह साबित कर दिया की आज भी समाज को मैसेज देने वाली कहानी एक गजब ड्रामे के साथ पसंद की जाती है।  लव ने एक लिव-इन-रिलेशन के पीछेे की कहानी को गजब तरीके से परोसा है, फ़िल्म में कई डायलॉग्स काबिल-ए-तारीफ है जैसे 'इससे तो अच्छा कि अपने हाथ से ही शादी कर लो...' संगीत (हितेश सोनिक, शारिब व तोषी सबरी) जो कर्ण प्रिय भी है, और कहानी के साथ है कही लगता नही है की जबरदस्ती गाने डालें हो...कार्तिक आर्यन ने फिल्म में अपने रोल के साथ न्याय किया है। कुछ नया कर दिखाने की पूरी कोशिश की है। इशिता शर्मा अपने किरदार की तह तक जाने की अच्छी कोशिश की है। सनी सिंह निज्जर गजब का अभिनय करते नजर आए और ओमकार कपूर भी अपने साथियों का भरपूर साथ देते दिखाई दिए। सोनाली सहगल भी अपने अभिनय की दम पर काफी हद तक दिल जीतने में सफल रहीं। नुशरत भरूचा अपने किरदार में कुछ अलग करने की कोशिश की, लेकिन असफल सी नजर आईं। टेक्नोलॉजी को छोड़ दिया जाए तो इस फिल्म की सिनेमेटाग्राफी कहीं-कहीं पर थोड़ी कमजोर रही। लव भी कहीं-कहीं पर असफल नजर आ रहे है|लिव-इन-रिलेशन को बड़े पर्दे पर एंटरटेनमेंट के साथ एक तरह के मैसेज को रूबरू कराती है यह फ़िल्म..
 
पुष्कर ओझा