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शानदार नही जानदार (स्टार 2)

        क्वीन के बाद अपेक्षा थी की विकास बहल शानदार फिल्में बनाते है, पर फ़िल्म शानदार की शान बढ़ाने में सक्षम हो न पाए, "डेस्टीनेशन वेडिंग' अमूमन अमीरों के घरानों में होती आई है, यह फ़िल्म भी इसी तर्क पर बनाई गई, और यह बनाना एक आसान सा भी है बस करना यह है की भव्य सेट बना दो और सारे कलाकारों को ला कर रख दो. 
        कहानी की बात करे तो अरबपति अरोड़ा फैमिली में ममी जी यानी कमला अरोड़ा (सुषमा सेठ) का राज होता है। कमला का बड़ा बेटा विपिन (पंकज कपूर) एक अनाथ लड़की आलिया ( आलिया भट्ट) को घर लेकर आता है। कमला इस फैमिली की पूरी प्रॉपर्टी की  मालकिन हैं। हर वक्त वीलचेयर पर नजर आने वाली कमला का फैमिली में ऐसा खौफ है कि वह अपने तीनों जावन बेटों के साथ भी नौकरों जैसा सलूक करती है। घर में विपिन की पत्नी और मां कमला भी अनाथ आलिया को हमेशा यतीम होने का ताना कसती रहती हैं। विपिन की एक बेटी ईशा अरोड़ा (सना कपूर) है,  ईशा की शादी एक अमीर व्यापारी हैरी (संजय कपूर) के छोटे बेटे रॉबिन (दिलजीत दोसांझ) से होने वाली है। यह शादी दो रईस घरानों के बीच एक सीक्रेट बिज़नस डील की तरह है। कमला अपने बड़े बेटे विपिन की बेटी ईशा की शादी अपने औद्योगिक घरानों को बैंक करप्ट होने से बचाने के लिए कर रही है। विपिन और ईशा न चाहते हुए भी इस मैरिज डील का हिस्सा बनते हैं। शहर से दूर एक आलीशान लोकेशन पर होने वाली इस शानदार वेडिंग की जिम्मेदारी जगजिंदर जोगिंदर उर्फ जेजे (शाहिद कपूर) की है। यहीं पर जेजे की मुलाकात विपिन की दूसरी बेटी आलिया से होती है। दोनों को ही रात में न सो पाने की बीमारी है।  विपिन, को जेजे बिलकुल पासन नही है| एक दिन विपिन को ईशा से पता चलता है कि जेजे और आलिया एक-दूसरे को पसंद करते हैं तो विपिन इन दोनों के बीच दीवार बन जाता है। बेशक़ शानदार शादी है तू शुरुवात से आखिर तक शादी का माहौल नजर आता है और फ़ैमिली के पोल खुलते हुए भी| शाहीद-आलिया कई बार ओवर एक्टिंग करते नजर आए, पंकज कपूर की ऐक्टिंग कहाँ सकते है लाजवाब है। सना कपूर ने अपने मोटी ईशा के किरदार में जान डालने की पुरी कोशिश की है। फिल्म की स्क्रिप्ट काफी कन्फ्यूजिंग है। और यह सबसे बड़ी कमजोरी है। बेवजह एनिमेशन और शादी में शॉ ऑफ दिखाने के नाम पर इस बार विकास ने करोड़ों रुपये फूंक डाले। शानदार कल्पना और अवसर की फिजूलखर्ची है| फ़िल्म में कोई तर्क ही नही है| लगता है तर्क ताक पर रखा गया हो| दर्शक किरदारों के साथ अफसोस के साथ कहना पड़ता है की जुड़ पाते ही नही है|शानदार विकास बहल की ऐसी फ़िल्म है जो रंगीन, चमकीली, और भड़कीली जरूर है पर देखते हुए यह जरूर लगता है की हम काल्पनिक दुनिया में है| फ़िल्म का संगीत कह सकते है जानदार है, नजदीकियां. रायता फैल गया, शाम शानदार, नींद न मुझको आए. सॉन्ग हिट हो ही चुके है|
 
 
पुष्कर ओझा