हमारे देश में कई ऐसे राज्य हैं जहाँ पढ़ाई के मामले आज भी पीछे हैं, खासकर गांवो में आज भी लड़कियों को पढ़ाई से दूर रखा जाता हैं, आज भी बालविवाह प्रथा का चलन हैं, देश के भावी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लड़की बचाव लड़की पढ़ाओ का नारा सिर्फ नारा बन कर ही रह गया हैं, फिल्म पूर्णा की कहानी भी कुछ ऐसी ही हैं, यह फिल्म भारत का नाम रोशन करने वाली 13 साल 11 महीने की 'पूर्णा मालावत' की जिंदगी पर आधारित है।
फिल्म : पूर्णा
श्रेणी : बायोपिक ड्रामा
निर्देशक : राहुल बोस
कास्ट : राहुल बोस, अदिति इनामदार, मीना गुप्ता
निर्माता : राहुल बोस, अमित पाटनी
संगीत : सलीम सुलेमान
स्टार : 3.5 /5
यह कहानी है तेलंगाना के छोटे से गांव की पूर्णा (अदिति इनामदार) की, जो अपने माता-पिता के साथ रहती है और अपने चाचा की बेटी प्रिया के साथ स्कूल जाती है। प्रिया ने स्कूल के दौरान एक पैम्पलेट देखकर उससे कहा इस स्कूल में भर पेट खाना मिलता है। प्रिया के बाल विवाह के बाद अकेले हो जाने पर, पूर्णा दूसरे स्कूल में एडमिशन के लिए अपने पिता को मना लेती है। लेकिन नए स्कूल जाने पर वहां ऐसा कुछ भी नहीं होता है और ये सब देखकर पूर्णा स्कूल छोड़कर भाग जाती है। इस बीच पुलिस ऑफिसर का पद त्याग प्रवीण कुमार (राहुल बोस) स्कूल अधिकारी का पद चुनते हैं पदभार सँभालते ही अधिकारी प्रवीण कुमार पूर्णा को फिर से स्कूल में ले आते है, और फिर खाने की व्यवस्था बेहतर होती है। और एक दिन स्कूल ट्रिप पर पूर्णा को पर्वतारोहण करते देख, कोच उसे आगे की ट्रेनिंग देने की बात करते हैं और कुछ ही महीनों में पूर्णा माउंट एवरेस्ट जाने के लिए तैयार हो जाती है। पर पर्वतारोहण बीच में ही उसे तेज बुखार हो जाता हैं क्या पूर्णा अपना मिशन पूरा करती हैं, आपको फिल्म एक बार जरूर देखे ........
निर्देशन की बात करते राहुल बोस का बेहतरीन लोकेशन के साथ कमाल का निर्देशन और खूबसूरत दृश्य साथ आपको यह एहसास होगा की आप भी पूर्णा के साथ-साथ चल रहे हैं। पूर्णा की जिंदगी में घटने वाली घटनाएं आपको भीतर तक छू जाती हैं। साथ ही बर्फीले पहाड़ों के ऊपर की शूटिंग भी काफी दिलचस्प है। स्टोरी में राहुल ने एक छोटी बच्ची और उसके जज्बे को दर्शाने की अच्छी कोशिश की है।
अभिनय की बात करते हैं फिल्म में पूर्णा का किरदार निभा रही अदिति इनामदार ने बहुत ही उम्दा अभिनय किया है, राहुल बोस का काम भी अच्छा है और अन्य कलाकरो ने भी अच्छा अभिनय नज़र आया ।
संगीत की बात करते हैं बायोपिक फिल्मो का संगीत भले ही लोंगो की ज़ुबान पर नहीं चढ़ता पर फिल्म के दौरान गाने और अच्छे हो तो फिल्म को सहायता मिल जाती है, इस फिल्म में भी कुछ ऐसा ही नज़र आया कुछ परबत हिलाएं.., बाबुल मोरा और पूरी कायनात.. जैसे गाने आपको और कहानी को बांध कर रखती हैं । वाकय गीत अमिताभ भट्टाचार्य बेहतरीन लिखे तो सलीम सुलेमान ने संगीत खूब पिरोया और अरिजीत सिंह के साथ राज पंडित की आवाज भी कमाल की है।
फिल्म देखने के दौरान मेरे मन में कई सवाल उठे मशलन आज हम कहते हैं पढ़ाई बहुत जरुरी हैं पर पढ़ाई करे तो कहा और कैसे सरकारी स्कूल का हाल सबको पता ही हैं, और रहा सवाल निजी स्कूल के तेवर और फीस से सभी वाकिफ़ हैं, तो यह सवाल मेरे मन में बार बार उठता ही रहा की मोदी जी के सुविचार बेटी बचाव बेटी पढ़ाओ । आगे लिखने की आवश्यकता हैं ।
पुष्कर ओझा