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सच्चाई से रूबरू कराती फिल्म पिंक ( स्टार ३ )

        आज हम यह जरूर कहते हैं कि लड़किया भी लड़को से कम नहीं हैं, आप चाहे जिस फिल्ड की बात कर लो लडकिया भी उतनी ही सक्षम नज़र आती हैं जितने लड़के, हा हमारे समाज की एक विडम्बना हैं की लड़की देर रात काम से घर आए, वह शराब पिए, सिगरेट पिए तो समजा जाता हैं की लड़की का चालचलन ठीक नहीं हैं. निर्देशक अनिरुद्ध रॉय चौधरी की फिल्म पिंक ने इसी विषय को छूने की एक अच्छी कोशिश की हैं। 'पिंक' एक कोर्ट रूम ड्रामा है, जिसके निर्माता हैं  फिल्म 'पीकू' के निर्देशक शुजीत सरकार और  सुभाष कपूर की जॉली एल एल बी के बाद ये दूसरी फिल्म है जिसमें कोर्ट रूम ड्रामा असल जिंदगी में जैसा होता है वैसा दिखाया गया है । 
         फिल्म की कहानी शुरू होती हैं एक रसूखदार पॉलिटिशियन के भतीजे और उसके दोस्त से जहा यह नज़र आता हैं की पॉलिटिशियन के भतीजे को गंभीर चोट लगी हैं दरअसल एक रात पॉलिटिशियन के भतीजे और उसके दोस्त, तीन लड़कियों के साथ एक पार्टी करते हैं इन लड़कियों से इनकी हाल ही में दोस्ती हुई हैं, और एकाएक तीनो लड़के इन लड़कियों के साथ वह करना चाहते हैं जो इन लड़कियों को गवारा ही नहीं था इनसे छेड़खानी करते हैं और बदसलूकी की कोशिश करते हैं और फिर लड़कियां जब ऐतराज़ जताती हैं तो उनमें हाथापाई होती है और एक लड़की के हाथों पॉलिटिशियन का भतीजा बुरी तरह से घायल हो जाता है. फिर बदलें में लड़कियों को रसूखदार लड़कों से मिलती है धमकियां और मामला पुलिस तक पहुंचता है. इसके बाद शुरू होता है इल्जामों का दौर. लड़कियों का केस लड़नेवाले वकील के किरदार में अमिताभ बच्चन नजर आते हैं तो लड़को का केस लड़ने पियूष मिश्रा नज़र आते हैं अमिताभ बच्चन को जब की  एक बाइपोलर बीमारी से ग्रस्त भी दिखाया गया है. अपनी बीमारी के बावजूद वह इन लड़कियों की तरफ से केस लड़ते हैं । 
           अब बात करते हैं स्क्रिप्ट की तो एक दमदार स्क्रिप्ट हैं जिसमे कई सवाल छुपे थे जिसे बखूबी पर्दे पर उतारा हैं जैसे क्या जो लड़कियां अकेले रहती हैं, अपने पैरों पर खड़ी हैं, डिस्को जाती हैं, वेस्टर्न कपड़े पहनती है, शराब या सिगरेट पीती हैं, लडको से हंस कर बात करती हैं, तो यह माने की लडकिया अच्छी नहीं हैं उनके चालचलन पर प्रशनचिन्ह लगाते है । वही दिल्ली की सड़कें और मोहल्ले फिल्म में एक किरदार की तरह इस्तेमाल कर पिरोया गया हैं, आपको यकीनन लगेगा कि जैसे वाकई सबकुछ सच में आपके सामने हो रहा हो। 
           अभिनय की बात करे एक फिल्म की कहानी स्क्रिप्ट अच्छी हो पर अगर अभिनय थोड़ा भी लड़खड़ा जाता तो शायद फिल्म भी लड़खड़ाती नज़र आती पर फिल्म पिंक में तापसी पन्नू , कीर्ति कुलहरी, एंड्रिया तेरियांग ने अपना दुख, जि‍ल्लत, दहशत और एक दूसरे से अपनी बॉन्डिंग नहीं दर्शाती तो ये फिल्म मुंह के बल गिरती। साथ ही इस फिल्म में अंगद बेदी, पीयूष मिश्रा, ध्रीतम चटर्जी ने दमदार अभिनय किया है, अमिताभ बच्चन की तो ठीक है कही कही लगा की वह ओवर एक्टिंग कर रहे हैं पर महानायक की यह भी एक कला ही तो हैं । 
          कमजोर कड़ी की बात करे तो अच्छाई  के सामने बुराई ज्यादा वक़्त नहीं टिक सकती हैं, फिल्म थोड़ी स्लो चलती हैं अगर जरा फ़ास्ट होती तो और मजा आता । 
             यह फिल्म एक बार जरूर देखनी चाहिए ऐसा मेरा मानना हैं । 
 
पुष्कर ओझा