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समीक्षा - हसीना पारकर: सब नकली और बनावटी ( स्टार 2 )


फ़िल्म:हसीना पारकर
डायरेक्टरः अपूर्वा लाखिया
कलाकारःश्रद्धा कपूर, सिद्धांत कपूर और अंकुर भाटिया
रेटिंगः 2 स्टार
     बॉलीवुड में अंडरवर्ल्ड की दुनिया को कई फिल्मकारों ने पेश किया है। पिछले कुछ वर्षों में दाऊद इब्राहिम पर कई फिल्में बनी है मगर डॉन की दुनिया मे किसी महिला के चारों ओर घूमती हुई कहानी पूरी तरह से बॉलीवुड फिल्मों में दुर्लभ हैं । 1999 में, शबाना आज़मी की 'गॉडमदर' रिलीज हुई थी। इसी हफ्ते रिलीज़ हुई 'हसीना पारकर' में श्रद्धा कपूर ने दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना का किरदार अदा किया है, लेकिन इस फ़िल्म में  एक अंडरवर्ल्ड डॉन की बहन से ज़्यादा एक महिला को पेश करने की कोशिश की गई है जो एक पत्नी और मां भी है।दिखाया गया है कि जब उसका भाई दुबई चला जाता है तो उसपर क़यामत टूट पड़ती है।पुलिस बार बार उसे पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन बुलाती हैं। उसका कुसूर केवल यह है कि वह दाऊद की बहन है। फ़िल्म को कोर्ट रूम ड्रामे के साथ दिखाया गया है अतीत और वर्तमान का ट्रैक साथ साथ चलता रहता है।
        अपूर्वा लाखिया की यह फिल्म हसीना की बैकस्टोरी सुनाने पर काफी वक्त लेती है। हसीना के पिता एक पुलिस कांस्टेबल थे, जो अपने बेटों को गलत रास्ते पर चलने से रोकने की बहुत कोशिश करते हैं। जब हसीना की शादी होती है और फिर वह मां बनती है उसके बाद उसका संघर्ष शुरू होता है। यह एक औरत का बड़ा गहरा स्केच हो सकता था लेकिन जिस तरह से श्रद्धा ने इसे पेश किया है उससे उनकी नाकामी प्रतित होती है।
      ‘शूटआउट एट लोखंडवाला' के डायरेक्टर अपूर्वा लाखिया की यह फिल्म निराश करती है. फिल्म की कास्टिंग से लेकर कहानी, स्क्रीनप्ले और संवाद तक सब में गड़बड़ी है. फ़िल्म में न तो ‘हसीना आपा’ ही कोई छाप छोड़ पाने में सफल हुई है और न ही ‘भाई’ इम्प्रेस कर पाया है. हाल ही में रिलीज़ हुई 'डैडी' में भी दाऊद के किरदार में फ़रहान अख्तर नही जमे थे और अब 'हसीना पारकर' में सिद्धान्त कपूर ने दाऊद के रोल में निराश किया है. ' यह कोई ज़रूरी नही था कि असल जिंदगी के भाई बहन को ही फिलमी भाई बहन बना दिया जाए. सिद्धांत कहीं से भी दाऊद नही लगे हैं।ऊपर से उनकी डबिंग भी किसी और से करवाई गई है जो साफ पता चलती है। हसीना पारकर के रोल को श्रद्धा ज़िन्दगी देने में नाकाम रही. उनका लुक, डाइलॉग डिलीवरी और सूजे हुए गाल सब बनावटी प्रतीत होते हैं। ये फिल्म श्रद्धा के लिए एक अच्छा मौका था पर उन्होंने इसे गंवा दिया। हसीना के पति के रोल में अंकुर भाटिया ने अवश्य प्रभावित किया है।
       फिल्म की कहानी 2007 से शुरू की गई है, जब हसीना पारकर अदालत में पेशी के लिए आती है। अदालत के सीन फिल्माने और डायरेक्ट करने में अपूर्वा नाकाम दिखते है कभी कभी एकदम सीरियस सीन्स के दौरान आपको हंसी आ जाती है। यह पूरी तरह लेखनी, निर्देशन, एडिटिंग और प्रोडक्शन डिज़ाइनिंग की कमी है।
        श्रद्धा कपूर हसीना पारकर के किरदार में फिट नजर नहीं आतीं। कोर्ट में महिला वकील के सवाल पूछने का अंदाज़ हो या फिर जज का सदा मुस्कुराता चेहरा दर्शको को खलता है।
        हालांकि फ़िल्म का बैकग्राउंड स्कोर बेहतर है। फिल्म में एक रोमांटिक गाना बिना किसी जरूरत के है और वह इतना बड़ा गीत है कि उस गाने की वजह से फिल्म की रफ्तार प्रभावित होती है।
मुझे लगता है कि श्रद्धा कपूर के फैन के लिए भी यह निराशाजनक मूवी है।यंग हसीना के किरदार में तो श्रद्धा फिर भी विश्वसनीय लगती है मगर बच्चों की माँ और एक औरत के रोल को वह अदा नही कर पाई है। उनके मेकअप पर भी ध्यान नही दिया गया है। कही वह सांवली दिखायी गयी है और कही एकदम काली। 
समीक्षक: गाज़ी मोईन